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Osho Thought...

 "मैं कैसे जानूं कि कोई स्त्री वास्तव में मुझसे प्रेम करती है, खेल नहीं खेल रही? यह कठिन है! कोई भी इसे कभी नहीं जान सका — क्योंकि वास्तव में, प्रेम ही एक खेल है। यही उसकी सच्चाई है! यदि तुम प्रतीक्षा करते रहोगे, देखोगे, सोचते रहोगे, विश्लेषण करते रहोगे कि यह स्त्री जो तुमसे प्रेम कर रही है, वह सचमुच प्रेम कर रही है या केवल खेल खेल रही है — तो तुम कभी किसी स्त्री से प्रेम नहीं कर पाओगे। क्योंकि प्रेम तो एक खेल है — सबसे श्रेष्ठ खेल! इसके वास्तविक होने की माँग करने की कोई आवश्यकता नहीं — खेलो इस खेल को! यही इसकी वास्तविकता है। और यदि तुम बहुत अधिक 'यथार्थ' के खोजी हो, तो प्रेम तुम्हारे लिए नहीं है। प्रेम एक स्वप्न है! यह कल्पना है — यह एक कथा है, एक रोमांस है, एक कविता है। अगर तुम यथार्थ के प्रति अत्यधिक जुनूनी हो, तो प्रेम तुम्हारे लिए नहीं है — फिर ध्यान करो… दूसरे के बारे में निश्चित होने का कोई तरीका नहीं है — पहले स्वयं के बारे में निश्चित हो जाओ। और जो व्यक्ति अपने भीतर निश्चित हो गया है, वह पूरे जगत के बारे में निश्चित हो जाता है। तुम्हारे भीतर सबसे गहरे केंद्र में ज...

बना दे चितेरे: अज्ञेय

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  बना दे चितेरे, मेरे लिए एक चित्र बना दे। पहले सागर आँक : विस्तीर्ण प्रगाढ़ नीला, ऊपर हलचल से भरा, पवन के थपेड़ों से आहत, शत-शत तरंगों से उद्वेलित, फेनोर्मियों से टूटा हुआ, किन्तु प्रत्येक टूटन में अपार शोभा लिये हुए, चंचल उत्कृष्ट, -जैसे जीवन। हाँ, पहले सागर आँक : नीचे अगाध, अथाह, असंख्य दबावों, तनावों, खींचों और मरोड़ों को अपनी द्रव एकरूपता में समेटे हुए, असंख्य गतियों और प्रवाहों को अपने अखण्ड स्थैर्य में समाहित किये हुए स्वायत्त, अचंचल -जैसे जीवन.... सागर आँक कर फिर आँक एक उछली हुई मछली : ऊपर अधर में जहाँ ऊपर भी अगाध नीलिमा है तरंगोर्मियाँ हैं, हलचल और टूटन है, द्रव है, दबाव है और उसे घेरे हुए वह अविकल सूक्ष्मता है जिस में सब आन्दोलन स्थिर और समाहित होते हैं; ऊपर अधर में हवा का एक बुलबुला-भर पीने को उछली हुई मछली जिसकी मरोड़ी हुई देह-वल्ली में उसकी जिजीविषा की उत्कट आतुरता मुखर है। जैसे तडिल्लता में दो बादलों के बीच के खिंचाव सब कौंध जाते हैं- वज्र अनजाने, अप्रसूत, असन्धीत सब गल जाते हैं। उस प्राणों का एक बुलबुला-भर पी लेने को- उस अनन्त नीलिमा पर छाये रहते ही जि...

आधुनिक भारत में लैंगिक समानता और अम्बेडकर सामाजिक समानता का दर्शन: एक अनुशीलन

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  यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । ( मनुस्मृति ३/५६ ।।)   कोई भी समाज तब तक उन्नति के पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता जब उस समाज में स्त्रियों को उचित सम्मान नहीं मिलता इसका निर्वहन प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत में देखने को मिलता है । आधुनिक भारत में सामाजिक समानता को विधिक स्तर स्थापित करने की दिशा जिन्होंने अपना विशेष योगदान दिया उनमें भीमराव अम्बेडकर का योगदान विशिष्ट है । भारतीय संविधान और अपने विचारों के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में अम्बेडकर जी ने जो कार्य किया उसका प्रभाव आज हमारे समाज में देखने को मिल रहा है । स्त्रियाँ ना सिर्फ समाज में अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर रहीं हैं वरन भारत को विकसित बनाने के क्रम में भी अपना सहयोग दे रहीं हैं । और यह सब कुछ संभव हुआ है भारतीय संविधान के उन प्रावधानों द्वारा जिन्हें अम्बेडकर जी संविधान के निर्माण के समय लागू कराया था । समाज के सभी वर्गों की महिलाओं की समाज के सभी क्षेत्रों में भागीदारी देखने को मिल रही है । अम्बेडकर जी ने   समाज के वंचित वर्ग की महिलाओं को जागरूक करने के साथ-स...